Rawa Rajput

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    रवा राजपूतो का इतिहास

    अनंगपाल तौमर के प्रपोत्र वीरेन्द्रपाल तौमर के राज्यकाल में दिल्‍ली के कुछ राजपूताना के चौहानों ने संघ से अलग होकर चाहर्माण ब्राह्मण को राजगुरु मान तथा उसके आदि गोत्र (वत्स) को अपना कर अजमेरू चोटी (अजमेर) में ११३० ई. में चौहान राजवंश की स्थापना की । राजवंश शाखा के संस्थापक अजयदेव राज गद्दी पर बैठे | यहाँ पर एक ऐतिहासिक प्रश्न उठाना स्वाभाविक है पृथ्वीराज व अनंगपाल तौमर का सम्बन्ध होना तर्क-न्याय संगत नहीं है। क्योंकि पृथ्वीराज का जन्म ११६४ ई. में कपूरी देवी से हुआ जबकि पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज की माता का नाम कमला लिखा है । जो ऐतिहासिक सम्मत नहीं है । ब्राह्मण गोत्र (वत्स) को अपनाने के बाद राठौर-कन्नौज नरेश महेन्द्रपाल के दरबारी राज कवि ब्राह्मण राज शेखर का एक चौहान कन्या से विवाह करा दिया इसी प्रकार राजा विशाल देव ने एक वैश्य कन्या से विवाह कर द्वन्द्द बढ़ाया जिनका राजपूतों व चौहान चंदेल नरेशों ने विरोध किया था। इस प्रकार से कन्नौज अजमेर व दिल्ली में चौहानों, तौमर राजाओं में हलचल हो गई थी।

    अकबर जोधाबाई व पिता भारमल सहमति पत्र की ऐतिहासिक पुष्टि नहीं हो पाई। इतना अवश्य है कि अकबर ने अपने राज्य काल में सीता राम व राधा कृष्ण के सिक्के गोल व चौकोर आकृति में (ताम्बे) चलाए क्योंकि जोधाबाई कृष्ण भक्ति की दिवानी थी सिक्के फतेहपुर सीकरी आगरा व मेरठ से प्राप्त हुए। राजमहल में अकबर ने एक कृष्ण मंदिर भी बनवाया था जहाँ जोधाबाई पूजा करती थी जो युद्ध के दौरान जमींदोज कर दिया गया था।


    रवा राजपूत में शामिल छ राजवंश तथा समय के साथ पैदा हुई उनकी शाखाऐं इस प्रकार है।

    1.आदिकालीन वंश- सूर्यवंश से उत्‍पन्‍न दो राजवंश गहलोत तथा कुशवाहा गहलोत राजवंश का आदिकालिन गोत्र वैशम्‍पायन है तथा कुशवाहा राजवंश का आदिकालीन गोत्र मानव/मनू है

    2. आदिकालीन वंश- चंद्रवंश से उत्‍पन्‍न दो राजवंश तॅवर तथा यदुवंश तोमर/तंवर राजवंश का आदिकालिन गोत्र व्‍यास है तथा यदु राजवंश का आदिकालीन गोत्र अत्रि है

    3. आदिकालीन वंश- अग्निवंश से उत्‍पन्‍न दो राजवंश चौहान तथा पंवार चौहान राजवंश का आदिकालिन गोत्र वत्‍स/वक्‍च्हस है तथा पॅवार राजवंश का आदिकालीन गोत्र वशिष्‍ठ है


    उपरोक्‍त राजवंशो को बाद में आवश्‍यकता अनुसार कुछ शाखाओं में विभाजित किया गया और दुर्भाग्‍य से इन शाखाओं का गोत्र के रूप में प्रयोग होने लगा है :-

    शिशोदिया या गहलौत की शाखाएँ : अहाड, बालियान, ढाकियान, ठाकुरान, राणा।
    कुशवाह वंश की शाखाएँ : कुशवाह, देशवाल करकद्द-कौशक,शेखावत-एरावत।
    तोमर/तंवर वंश की शाखाएँ : तोमर/तंवर, भरबानिया, सूरयाण, सुमाल रोलीयान, चौधरान, ठाकुरान, चौवेयाने, छनकटे, गंधर्व, श्रपाल, मोघा,काकतीय, हूचकु, लाखे, जिनकार, टटील॑, मोधा, पाथरान।
    यदु वंश की शाखाएँ : पातलन, यदु खारिया, इन्दोरिया, छोकर,माहियान।
    चौहान वंश की शाखाएँ : चौहान, कटारिया, बाढ़ियान, कान्हड़,धारिया, गांगीयान, माकल, गरूड़, चंचल, खैर, ग्रेड
    पंवार की शाखाएं : राजा भोज के छोटे भाई के पुत्र रन्धोल पंवार व जगदेव पंवार, बीरमति, जगदेव पंवार के पुत्र कालूराम के पुत्र डाहर सिंह व टोडर सिंह से पंवार टोंडक, वशिष्ठान, डाहरिया उदयान भतेड़े,
    कुछ शाक्शों के अनुसार रंघोल पंवार का एक पुत्र व एक पुत्र जगदेव पंवार का जसड़ गाँव में रहे इनको ब्याह शादी में परेशानी आई तों टोंडक शाखा बनाकर पलड़ी गाँव बसाया।
    इस वंश के मिलान में काफी परेशानी आई इस वंश को शाखा में तेड़ा, डाहर, गोटका कुछ गूर्जर राजपूत भी इस वंश शाखा में हैं । कुछ शाखाएँ तुगलक वंश तथा कुछ शाखाएं मुगल काल में बनी।

    उपरोक्‍त सभी वस्‍तुत: छ राजवशों की शाखाऐं है परन्‍तू अव वैवाहिक सुविधा के कारण इनका प्रयोग गोत्र के रूप में भी किया जाता है।
    वास्‍तव में ये शाखाऐं गोत्र नही है। इस कारण भूल वश एक गौत्र की अलग अलग शाखा मे ही शादी वि‍वाह होने लगे हैं।

    अनेक क्षेत्रों मे इन छ: राजवंशो के राजपूत स्‍वयं को रवा राजपूत के बजाय अपने राजवश के नाम का सम्‍बोधन जैसे तंवर, चौहान, पवांर आदि‍, करते हैं।

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